उपराष्ट्रपति चुनाव में जीत सकती एनडीए? समझे इंडिया ब्लॉक का पूरा नंबर गेम!

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NDA: भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए 9 सितंबर को होने वाले चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के उम्मीदवार, पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी के खिलाफ संख्यात्मक बढ़त हासिल है. मंगलवार (19 अगस्त) को राजधानी में विपक्षी नेताओं की बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने घोषणा की कि जस्टिस रेड्डी ‘इंडिया’ गठबंधन के सर्वसम्मति से चुने गए उम्मीदवार होंगे. खड़गे ने कहा, “रेड्डी 21 अगस्त को अपना नामांकन दाखिल करेंगे, और इस अवसर को चिह्नित करने के लिए सभी इंडिया गठबंधन के सांसद कल सेंट्रल हॉल में एकत्र होंगे.”

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, विपक्षी गठबंधन इंडिया अलायंस ने इस चुनाव को “वैचारिक लड़ाई” के रूप में पेश किया है, लेकिन संख्याएँ साफ तौर से एनडीए के पक्ष में हैं. चूंकि, उपराष्ट्रपति का चुनाव 788 सदस्यों (लोकसभा और राज्यसभा) वाले निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है.

जानिए कैसे होता भारत में उप राष्ट्रपति का चुनाव!

प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) के अनुसार, वर्तमान में छह सीटें रिक्त हैं, जिससे प्रभावी मतदान शक्ति 782 सांसदों की रह गई है. जहां हर सांसद का एक वोट होता है, और जीत के लिए उम्मीदवार को कम से कम 392 वोट चाहिए. वर्तमान में, बीजेपी के पास अकेले 423 सांसद हैं (लोकसभा में 293 और राज्यसभा में 130). यह आंकड़ा जीत के लिए आवश्यक आधे से अधिक है. यदि एनडीए के सभी सहयोगी उनके उम्मीदवार, सीपी राधाकृष्णन के पक्ष में मतदान करते हैं, तो 9 सितंबर के चुनाव में एनडीए की जीत लगभग तय है, बशर्ते क्रॉस-वोटिंग या अप्रत्याशित अनुपस्थिति न हो.

उपराष्ट्रपति पद क्यों है रिक्त?

दरअसल, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई 2025 को इस्तीफा दे दिया जिससे यह पद खाली हो गया. वह कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफा देने वाले तीसरे उपराष्ट्रपति हैं. चुनाव आयोग ने इसके बाद चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की. जिसमें नामांकन की अंतिम तारीख 21 अगस्त होगी और नाम वापसी की अंतिम तारीख 25 अगस्त रखी गई. जबकि, चुनाव और मतगणना 9 सितंबर को पूरी होगी.

वैचारिक टकराव या संख्याओं का खेल?

विपक्ष जस्टिस रेड्डी के नेतृत्व में एक मजबूत वैचारिक चुनौती पेश करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन एनडीए की संख्यात्मक ताकत इसे कठिन बनाती है. यह चुनाव भारत की राजनीतिक गतिशीलता को दिखाता है, जहां संख्याएँ और रणनीति निर्णायक भूमिका निभाती हैं.

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