उत्तर कोरिया से आई नई रिपोर्ट ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया है. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ता जोशुआ एल्व्स-पॉवेल के हवाले से द टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि वहां अब लगभग हर बड़ा जानवर इंसानों की थाली में पहुंच रहा है.
उन्होंने कहा- ‘उत्तर कोरिया में हेजहॉग से बड़े लगभग हर स्तनधारी को या तो खाया जा रहा है या बेच दिया जा रहा है.’ देश के जंगलों में अब बाघ, बिज्जू, भालू और हिरण तक का शिकार होने लगा है.
राज्य व्यवस्था चरमराई
उत्तर कोरिया में यह संकट नया नहीं है. 1990 के दशक के अंत में आए अकाल ने पहली बार लोगों को जंगलों की ओर धकेला था. तब से लेकर अब तक राज्य की वितरण प्रणाली पूरी तरह ढह चुकी है. भोजन की कमी और बेरोजगारी के चलते लोग जंगली जानवरों का शिकार कर रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार शिकारी, पूर्व सैनिक और व्यापारी इन जानवरों को या तो खाने के लिए मार रहे हैं या अवैध व्यापार में बेच रहे हैं.
दुर्लभ प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर
इस अनियंत्रित शिकार से कई दुर्लभ प्रजातियां खत्म होने के कगार पर हैं. इनमें साइबेरियन टाइगर, अमूर लेपर्ड और सेबल जैसे जानवर शामिल हैं. सेबल नामक जानवर का फर महंगे कोट बनाने में भी इस्तेमाल होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर स्थिति जल्द नहीं सुधरी, तो उत्तर कोरिया की जैव विविधता को अपूरणीय नुकसान हो सकता है.
किम की विलासिता, जनता की भूख
वहीं, दूसरी ओर तानाशाह किम जोंग-उन की आलीशान जिंदगी पर दुनिया सवाल उठा रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जब जनता भूख से जूझ रही है, किम आयातित व्यंजन और महंगे पेयों का आनंद ले रहे हैं. हाल ही में उन्होंने महिलाओं के लिए एक अजीब आदेश भी जारी किया- अब स्तन प्रत्यारोपण (ब्रेस्ट इम्प्लांट) करवाना ‘गैर-साम्यवादी’ और ‘पूंजीवादी’ माना जाएगा. यह फरमान दर्शाता है कि उत्तर कोरिया में न केवल भोजन बल्कि स्वतंत्रता भी विलुप्त होती जा रही है.
बाघ और बिज्जू बने मजबूरी का निवाला
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बाघ का मांस कठोर और झिल्लीनुमा होता है, जिसका स्वाद बकरी या सूअर के मांस से मिलता-जुलता है. जबकि बिज्जू का मांस गहरा और खुरदुरा होता है, जिसका स्वाद हिरण या जंगली खरगोश जैसा बताया गया है. हालांकि विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि इन जानवरों का सेवन न केवल नैतिक रूप से गलत है बल्कि पर्यावरणीय संतुलन के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है.