कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने गाज़ा पट्टी में इजरायली रक्षा बलों (IDF) द्वारा किए जा रहे हमलों की तीव्र निंदा की है. उन्होंने इसे ‘नरसंहार’ करार देते हुए इजरायल पर फिलिस्तीनी नागरिकों के मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन करने का आरोप लगाया. इसके साथ ही उन्होंने भारत सरकार की चुप्पी पर भी सवाल उठाया और इसे नैतिक रूप से अस्वीकार्य बताया.
हजारों बच्चों की मौत का लगाया आरोप
प्रियंका गांधी ने अपने बयान में दावा किया कि अब तक 18,430 बच्चों सहित 60,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है. उन्होंने गाज़ा में अल-जज़ीरा के पांच पत्रकारों की मौत को ‘निर्दयी हत्या’ कहा और इसे इजरायली कार्रवाई का हिस्सा बताते हुए ‘जघन्य अपराध’ कहा. उन्होंने कहा कि ऐसे हमलों पर मौन रहना और कोई कार्रवाई न करना, स्वयं में एक तरह की भागीदारी है.
पत्रकारों की हत्या पर जताया गहरा दुख
प्रियंका गांधी ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “अल-जज़ीरा के पांच पत्रकारों की निर्मम हत्या फिलिस्तीनी ज़मीन पर हुआ एक और घिनौना अपराध है.” उन्होंने कहा कि इन पत्रकारों ने सच्चाई को सामने लाने का साहस दिखाया और उनका बलिदान सच्ची पत्रकारिता की मिसाल है. प्रियंका ने कहा कि ऐसे समय में जब मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सत्ता और व्यापार के अधीन हो चुका है, इन बहादुर पत्रकारों ने हमें पत्रकारिता के मूल उद्देश्य की याद दिलाई है.
संयुक्त राष्ट्र ने भी उठाई आवाज
इस घटना को लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने पत्रकारों के शिविर पर हुए हमले को अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का गंभीर उल्लंघन बताते हुए इसकी निंदा की. यूएन का कहना है कि मीडिया को निशाना बनाना न केवल पत्रकारों के अधिकारों का हनन है, बल्कि यह लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है.
इजरायली दूतावास का पलटवार
प्रियंका गांधी के आरोपों का जवाब देते हुए भारत में इजरायली राजदूत रूवेन अज़ार ने कहा कि इजरायल केवल आतंकी संगठन हमास के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है. उन्होंने दावा किया कि अब तक 25,000 से अधिक हमास आतंकवादी मारे गए हैं और आम नागरिकों की मौत के लिए हमास की रणनीति ही ज़िम्मेदार है.
‘नरसंहार के दावे गलत’
राजदूत ने यह भी कहा कि इजरायल ने गाज़ा में 20 लाख टन खाद्य सामग्री और मानवीय सहायता भेजी है. उन्होंने नरसंहार के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए जनता से अपील की कि वे हमास द्वारा जारी किए गए आंकड़ों पर आंख मूंदकर भरोसा न करें.