तमिलनाडु से आने वाले और डीएमके के वरिष्ठ चेहरे तिरुचि सिवा पिछले तीन दशकों से संसद में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. पांच बार राज्यसभा सदस्य चुने जा चुके सिवा अपनी तेजतर्रार अंदाज, स्पष्ट पक्षधरता और संवेदनशील मुद्दों को उठाने के लिए जाने जाते हैं. विपक्षी इंडिया ब्लॉक में उनका नाम उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में सामने आना उनकी राजनीतिक यात्रा और संतुलित छवि का सबूत माना जा रहा है.
राजनीतिक सफर
तिरुचि सिवा का जन्म 15 मई 1954 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ. छात्र जीवन से ही वे डीएमके के छात्र संगठन से जुड़े और राजनीति में सक्रिय हो गए. आपातकाल के दौरान 1976 में उन्हें मीसा कानून के तहत एक साल की कैद भी झेलनी पड़ी. पार्टी में वे धीरे-धीरे आगे बढ़े और डीएमके युवा विंग के सचिव से लेकर प्रचार सचिव और उप महासचिव तक के पदों पर पहुंचे. सिवा न सिर्फ एक राजनेता बल्कि लेखक और वक्ता के तौर पर भी पहचाने जाते हैं. वे नियमित रूप से ‘मुरसोलि’ और अन्य तमिल पत्रिकाओं में लेखन करते हैं.
संसद में योगदान
सिवा की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक 2015 में राज्यसभा में निजी सदस्य विधेयक के रूप में पेश किया गया ट्रांसजेंडर अधिकार विधेयक है, जो 45 साल में पारित होने वाला पहला ऐसा बिल था. इसने शिक्षा, रोजगार और भेदभाव से सुरक्षा के क्षेत्र में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए अधिकारों का रास्ता खोला. उन्होंने 2018 में महिला अधिकारों की पैरवी करते हुए सैनिटरी नैपकिन को जीएसटी से बाहर करने की मांग की थी. इसके साथ ही वे लगातार तमिलनाडु से जुड़े मुद्दे संसद में उठाते रहे हैं, जिनमें नीट परीक्षा का विरोध प्रमुख रहा है.
विवादित मुद्दों पर रुख
2019 में जब नागरिकता संशोधन विधेयक संसद में आया तो सिवा ने इसका पुरजोर विरोध किया. उन्होंने सवाल उठाया कि इसमें श्रीलंकाई तमिलों को क्यों शामिल नहीं किया गया और मुसलमानों को निशाना बनाकर अल्पसंख्यकों में डर क्यों पैदा किया जा रहा है. ऐसे मुद्दों पर उनका बेबाक रुख उन्हें विपक्ष की आवाज और अल्पसंख्यकों का भरोसेमंद चेहरा बनाता है.
सम्मान और पहचान
सिवा के काम और प्रभावी हस्तक्षेप को देखते हुए 2019 में उन्हें लोकमत संसदीय पुरस्कार में राज्यसभा के सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान मिला, जिसे तत्कालीन उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने प्रदान किया. लगातार पांचवीं बार राज्यसभा में उनकी मौजूदगी उनके अनुभव और राजनीतिक स्वीकार्यता को दर्शाती है. आज वे न केवल डीएमके बल्कि विपक्ष के भी प्रमुख चेहरे हैं, जिनकी गिनती संसद के सबसे प्रभावी वक्ताओं में होती है.
















