उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभ्यास कराने के चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने राजद नेता मनोज झा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलें सुनना शुरू किया. सिब्बल ने दलील दी कि एक निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव आयोग ने दावा किया था कि 12 लोग मृत हैं, लेकिन वे जीवित पाए गए, जबकि एक अन्य मामले में जीवित लोगों को मृत घोषित कर दिया गया.
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इस तरह के अभ्यास में कुछ खामियां होना स्वाभाविक है. चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी का तर्क है कि विचाराधीन सूची केवल एक मसौदा है और इस तरह की प्रक्रिया में छोटी-मोटी त्रुटियां होना लाज़मी है. उनका कहना है कि बूथ स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) द्वारा इन्हें ठीक किया जा सकता है. उन्होंने कहा, “किसी को हर तीसरे दिन अदालत में आकर यह बताने की जरूरत नहीं है कि 12 लोगों को मृत घोषित कर दिया गया है, लेकिन वे जीवित पाए गए हैं, या इसके विपरीत.”
पीड़ित व्यक्तियों के नाम बताएं चुनाव आयोग जवाबदेह होगा: न्यायमूर्ति कांत
न्यायमूर्ति सूर्यकांत का कहना है कि यदि वास्तव में कोई पीड़ित व्यक्ति है तो उसके नाम उपलब्ध कराए जाने चाहिए ताकि न्यायालय चुनाव आयोग को जवाबदेह ठहरा सके. जवाब में सिब्बल ने कहा कि बूथ स्तर पर त्रुटियां बनी हुई हैं और पूछा कि इनसे कैसे निपटा जाएगा, उन्होंने स्थिति को “अनुचित” बताया.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), जिसने एसआईआर जारी करने के निर्देश देने वाले चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को चुनौती दी है ने पिछले सप्ताह एक नया आवेदन दायर कर चुनाव आयोग को लगभग 65 लाख हटाए गए मतदाताओं के नाम प्रकाशित करने के निर्देश देने की मांग की थी. साथ ही नाम हटाने के कारण भी बताए गए थे.
















