चेन्नई में समुद्र बना झाग का सफेद समंदर, बारिश के बाद उठा जहरीला फोम, विशेषज्ञों ने दी खतरे की चेतावनी

चेन्नई के तटीय इलाकों में बुधवार को लगभग डेढ़ किलोमीटर तक फैला सफेद झाग समुद्री किनारों पर दिखाई दिया. विशेषज्ञों ने इसे पर्यावरण और जनस्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बताया है.

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चेन्नई का समुद्री किनारा इन दिनों किसी फिल्मी सेट जैसा दिख रहा है. बुधवार को मरीना बीच से लेकर श्रीनिवासपुरम तक का लगभग 1.5 किलोमीटर लंबा हिस्सा सफेद झाग से भर गया.

लोगों ने इस दृश्य को कैमरे में कैद कर सोशल मीडिया पर शेयर किया, जिसे देखकर कई लोगों ने इसे ‘नेचर का जादू’ कहा. लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि खूबसूरत दिखने वाला यह झाग दरअसल प्रदूषण की खतरनाक निशानी है, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर खतरा बन सकता है.

बारिश और सीवेज का मेल बना जहरीला झाग

तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (TNPCB) के अधिकारियों के मुताबिक, अड्यार बेसिन में भारी बारिश के बाद नदी में पानी का स्तर बढ़ गया, जिससे बड़ी मात्रा में सीवेज और फॉस्फेट युक्त रासायनिक अपशिष्ट समुद्र में पहुंच गया. यह मिश्रण जब लहरों के साथ टकराया, तो उसमें झाग बनने की प्रक्रिया तेज हो गई.

स्थानीय मछुआरा समुदाय का कहना है कि जब हवा की दिशा या समुद्री धाराओं में बदलाव होता है, तब झाग का फैलाव बढ़ जाता है. हालांकि उनका आरोप है कि औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला रासायनिक कचरा भी इस प्रदूषण का बड़ा कारण है.

मछलियों के प्रजनन और मछुआरों की आजीविका पर संकट

स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि इस तरह का झाग लंबे समय तक बना रहा तो यह मछलियों के प्रजनन क्षेत्रों को नुकसान पहुंचा सकता है. मानसून के महीनों में अड्यार नदी का मुहाना मछलियों के अंडे देने के लिए सुरक्षित जगह माना जाता है. यदि यह क्षेत्र प्रदूषित होता है, तो इससे स्थानीय मछुआरों की आजीविका पर भी सीधा असर पड़ेगा.

नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च (NCCR) की रिपोर्ट में भी पाया गया है कि झाग बनने की मुख्य वजह फॉस्फेट की उच्च मात्रा है. विशेषज्ञों ने बताया कि यह झाग त्वचा पर एलर्जी, जलन और खुजली जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है, खासकर बच्चों और मछुआरों में.

सोशल मीडिया पर ‘सुंदर’, लेकिन असल में खतरनाक

जहां एक ओर सोशल मीडिया पर लोग इस दृश्य को देखकर हैरान थे, वहीं पर्यावरण विशेषज्ञों ने लोगों से सतर्क रहने की अपील की है. उनका कहना है कि मरीना, थिरुवन्मियूर और बेजेंट नगर जैसे बीचों पर अगर कोई सीधे झाग के संपर्क में आता है, तो यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.

कई स्थानीय संगठनों और मछुआरा समुदायों ने सरकार से अपील की है कि औद्योगिक कचरे को समुद्र में जाने से रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाएं. उन्होंने कहा कि यह सिर्फ पर्यावरण नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य का भी मामला है.

प्रदूषण पर सख्त कार्रवाई की मांग

फिशरमेन यूनियन और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने राज्य सरकार से मांग की है कि झाग बनने के स्रोतों की पहचान कर दोषी इकाइयों पर कार्रवाई की जाए. विशेषज्ञों ने कहा कि यदि यह समस्या अनदेखी की गई, तो आने वाले वर्षों में चेन्नई का समुद्री पारिस्थितिकी संतुलन पूरी तरह बिगड़ सकता है.

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