रांची से जौनपुर लाते वक्त गायब हुई हथिनी बिहार के छपरा में मिली, जांच में आए तथ्य आपको हैरान कर देंगे

झारखंड के पलामू जिले से शुरू हुई हाथी चोरी की शिकायत ने एक ऐसा रहस्य खोला जिसने तीन राज्यों- उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार को जोड़ दिया.

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कहते हैं हाथी कभी भूलता नहीं, लेकिन इस बार मामला हाथी को लेकर ऐसा उलझा कि पुलिस, खरीदार और मालिक सभी चकरा गए. जयमति नाम की यह मादा हाथी न सिर्फ एक पारंपरिक विरासत का हिस्सा थी, बल्कि उसके गायब होने और फिर अचानक बिहार में मिलने से पूरा प्रकरण एक बड़े कानूनी विवाद में बदल गया है.

जानकारी के अनुसार करीब दो हफ्ते पहले उत्तर प्रदेश के जौनपुर निवासी नरेंद्र कुमार शुक्ला ने झारखंड के पलामू जिले में पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई थी. उन्होंने दावा किया था कि उनका हाथी जयमति, जिसे वे पारिवारिक परंपरा निभाने के लिए लेकर आए थे, चोरी हो गया है. शुक्ला ने आरोप लगाया कि हाथी को संभालने वाला महावत ही इसकी चोरी में शामिल है. उनका कहना था कि जयमति को रांची से जौनपुर लाया जा रहा था, तभी पलामू के जोरकट इलाके से हाथी और महावत दोनों गायब हो गए.

बिहार में मिला हाथी

पुलिस की जांच आगे बढ़ी तो जयमति का सुराग बिहार के छपरा से मिला. वहां यह हाथी एक व्यक्ति, गोरख सिंह, के पास पाया गया. गोरख सिंह का दावा था कि उन्होंने इस हाथी को 27 लाख रुपये में खरीदा है और इसके वैध दस्तावेज भी उनके पास मौजूद हैं. शुरुआती शक पुलिस को महावत पर गया कि शायद उसने ही हाथी बेचने की साजिश रची होगी.

जांच में हुआ बड़ा खुलासा

लेकिन जांच ने जल्द ही नया मोड़ ले लिया. पलामू की पुलिस प्रमुख रीष्मा रमेशन ने बताया कि शुक्ला इस हाथी के अकेले मालिक नहीं थे. दरअसल, जयमति को कुल चार साझेदारों ने मिलकर 40 लाख रुपये में खरीदा था. इनमें से तीन साझेदारों ने आपस में एक समझौता कर गोरख सिंह को यह हाथी बेच दिया था. जबकि शुक्ला ने इसे चोरी का मामला बताकर लगभग एक करोड़ की कीमत का दावा किया था. यही वजह थी कि पुलिस ने मामले को धोखाधड़ी और साझेदारी विवाद के रूप में दर्ज किया.

अब किसकी होगी जयमति?

गोरख सिंह ने हाथी खरीदने से जुड़े दस्तावेज पुलिस को सौंप दिए हैं और फिलहाल जयमति उनके पास ‘कस्टडी बॉन्ड’ पर रखी गई है. पुलिस ने सभी पक्षों से दस्तावेज जमा करने के लिए सोमवार तक का समय दिया है. अधिकारियों का कहना है कि सभी प्रमाणों की जांच के बाद ही कानूनी तौर पर असली मालिक की पहचान हो पाएगी. इस दौरान प्रशासन ने साफ किया कि हाथी का भविष्य केवल अदालत और कागजी प्रमाण तय करेंगे.

यह पूरा मामला न सिर्फ एक हाथी की बिक्री और स्वामित्व का है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे परंपरा, पैसा और साझेदारी के विवाद मिलकर एक अनोखी कानूनी जंग का रूप ले सकते हैं. जयमति अब केवल एक हाथी नहीं रही, बल्कि तीन राज्यों को जोड़ने वाले विवाद की धुरी बन गई है.

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