भारत की आर्थिक यात्रा सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस बदलाव की दास्तां है जिसने एक साधारण उपभोक्ता बाजार को वैश्विक शक्ति में तब्दील कर दिया. 1975 से 2022 तक के आंकड़े और 2030 तक के अनुमान बताते हैं कि भारत ने किस तरह लगातार अपनी जगह मजबूत की है. अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी और ब्रिटेन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ तुलना करने पर यह तस्वीर और साफ हो जाती है कि भारत अब सिर्फ विकासशील देश नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक शक्ति की कतार में खड़ा है.
एसएंडपी की रेटिंग और भरोसा
एसएंडपी ग्लोबल ने 18 साल बाद भारत की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग को ‘BBB’ तक बढ़ा दिया है. यह कदम सिर्फ औपचारिक सुधार नहीं, बल्कि निवेशकों और वैश्विक बाजार के लिए यह संकेत है कि भारत की अर्थव्यवस्था अब स्थिर और भरोसेमंद है. बेहतर वित्तीय प्रबंधन और स्थिर विकास दर ने यह बदलाव संभव बनाया है.
बदलता वैश्विक आर्थिक संतुलन
1975 में जब विश्व बैंक के आंकड़े दर्ज हुए, तब भारत की जीडीपी का आकार अमेरिका, जापान और जर्मनी की तुलना में बेहद छोटा था. लेकिन धीरे-धीरे भारत ने अपनी स्थिति मजबूत की. चीन के उभार के बाद अब भारत वह अगला बड़ा खिलाड़ी बनकर सामने आया है जो वैश्विक आर्थिक संतुलन को बदल रहा है. खासकर आईटी, सेवा क्षेत्र और औद्योगिक विकास ने इसमें अहम भूमिका निभाई.
आईएमएफ के अनुमान और 2030 की तस्वीर
आईएमएफ के अनुसार 2030 तक भारत की जीडीपी दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होगी. भारत लगातार चीन और अमेरिका के बाद सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहेगा, यह बदलाव न सिर्फ संख्याओं में बल्कि रोजगार, निवेश और उत्पादन क्षमता में भी दिखेगा. भारत की युवा आबादी और डिजिटल क्रांति इस विकास को और तेज करेगी.
उभरते बाजार से वैश्विक शक्ति तक
पिछले पांच दशकों में भारत ने यह साबित किया है कि कठिन चुनौतियों और सीमित संसाधनों के बावजूद, एक मजबूत आर्थिक नीति और सुधारों से बड़ा बदलाव लाया जा सकता है. 1975 का भारत आज की तुलना में बहुत अलग था, लेकिन अब तस्वीर साफ है. भारत उभरते बाजार से निकलकर वैश्विक आर्थिक शक्ति बन चुका है और आने वाले वर्षों में यह रफ्तार और तेज होगी.
















