बेंगलुरु से एक अहम फैसला आया है जहां कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और उससे जुड़ी जिम्मेदारियों पर सख्त रुख अपनाते हुए X कॉर्प की याचिका को खारिज कर दिया. कंपनी ने सरकार के सहयोग पोर्टल की वैधता पर सवाल उठाए थे, लेकिन कोर्ट ने साफ कर दिया कि डिजिटल स्पेस में स्वतंत्रता का मतलब बिना नियंत्रण के काम करना नहीं हो सकता.
सोशल मीडिया पर नियंत्रण जरूरी
जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने अपने फैसले में कहा कि सोशल मीडिया पर मौजूद कंटेंट की निगरानी अनिवार्य है. उन्होंने टिप्पणी की कि अगर ऐसे प्लेटफॉर्म्स को पूरी तरह स्वतंत्र छोड़ दिया जाए तो संविधान द्वारा दी गई गरिमा का अधिकार, खासकर महिलाओं के मामलों में, गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि अमेरिकी संवैधानिक सोच को भारत की न्यायिक व्यवस्था पर नहीं थोपा जा सकता.
अमेरिका और भारत के नियमों में फर्क
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि X कॉर्प अमेरिका में कंटेंट हटाने के आदेशों का पालन करता है, क्योंकि वहां इसकी अनदेखी अपराध माना जाता है. लेकिन भारत में वही कंपनी समान आदेशों को मानने से इनकार करती है. कोर्ट ने इस रवैये को दोहरा मापदंड करार दिया और कहा कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.
याचिका क्यों हुई खारिज
X कॉर्प ने सहयोग पोर्टल को गैर-कानूनी बताते हुए कहा था कि इसके जरिए सरकार मनमाने ढंग से कंटेंट हटवाती है. लेकिन कोर्ट ने माना कि इस पोर्टल का उद्देश्य केवल ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को जवाबदेह बनाना और अवैध कंटेंट पर तुरंत कार्रवाई सुनिश्चित करना है. इस आधार पर कोर्ट ने कंपनी की दलीलों को खारिज कर दिया है.
डिजिटल इंडिया में बड़ी सीख
यह फैसला डिजिटल गवर्नेंस के लिए एक बड़ा संदेश माना जा रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम सोशल मीडिया कंपनियों को भारत के कानून और संवैधानिक ढांचे के अनुरूप काम करने के लिए मजबूर करेगा. साथ ही यह महिलाओं की सुरक्षा और ऑनलाइन अपराधों से निपटने में सरकार को मजबूत आधार प्रदान करेगा.