Ladakh statehood protest: आम तौर पर लद्दाख को शांत इलाका माना जाता है, लेकिन बीते कुछ हफ्तों से यहां राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग ने माहौल गरमा दिया है. बुधवार को हालात अचानक बिगड़ गए जब भूख हड़ताल पर बैठे दो बुजुर्गों के बेहोश होने की खबर के बाद छात्रों और युवाओं ने बंद का आह्वान कर दिया. देखते ही देखते भीड़ बेकाबू हो गई और हिंसा फैल गई.
दरअसल, लद्दाख में पिछले 35 दिनों से सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और कई स्थानीय लोग भूख हड़ताल पर बैठे थे. मंगलवार को दो बुजुर्ग अनशनकारियों की तबीयत बिगड़ गई और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा. इस खबर ने पूरे लेह में हलचल मचा दी. कांग्रेस नेता त्सेरिंग नामग्याल ने बताया कि बुधवार सुबह बड़ी संख्या में लोग अनशन स्थल की ओर बढ़े, लेकिन गुस्से में युवाओं ने नियंत्रण खो दिया और हिंसा शुरू हो गई.
बीजेपी दफ्तर और सुरक्षा वाहन जले
हजारों की संख्या में जुटे प्रदर्शनकारियों में से कुछ ने सीधे बीजेपी दफ्तर को निशाना बनाया. भीड़ ने पार्टी कार्यालय में आग लगा दी. इतना ही नहीं, बाहर खड़ी एक सुरक्षा गाड़ी को भी आग के हवाले कर दिया गया. पुलिस और अर्धसैनिक बल पहले से ही इलाके में मौजूद थे, जिन्होंने हालात काबू करने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया.
वांगचुक की अपील और हड़ताल खत्म
इस घटना के बाद सोनम वांगचुक ने सोशल मीडिया पर युवाओं से शांति बनाए रखने की अपील की. उन्होंने लिखा, ‘आज लेह में बहुत दुखद घटनाएं हुईं. मेरी शांतिपूर्ण आंदोलन की अपील नाकाम रही. युवाओं से अनुरोध है कि कृपया यह बेमानी हरकत बंद करें. इससे सिर्फ हमारा मकसद कमजोर होगा.’ वांगचुक ने इसके साथ ही अपना भूख हड़ताल आंदोलन भी समाप्त करने का ऐलान किया.
केंद्र से अगली बातचीत की तैयारी
गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 हटने और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन कानून 2019 के बाद लद्दाख सीधे केंद्र के अधीन हो गया. यहां कोई विधानसभा नहीं है, जबकि जम्मू-कश्मीर को अलग से विधानमंडल मिला. 90% से ज्यादा जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की होने के कारण लद्दाख के लोग छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं. इस मुद्दे पर केंद्र और लद्दाख के नेताओं के बीच 6 अक्टूबर को अगला दौर बातचीत का तय है.
क्या है छठी अनुसूची?
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची उन जनजातीय इलाकों को विशेष अधिकार और स्वायत्तता देती है, जिनकी अपनी परंपराएं और जीवनशैली बाकी समाज से अलग होती हैं. इसके तहत असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिला परिषदें बनाई गई हैं. इन परिषदों को शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बाजार, खेती, जमीन, जंगल और पानी जैसे मामलों में फैसले लेने का अधिकार होता है. साथ ही वे जनजातीय रीति-रिवाजों, विवाह-तलाक और उत्तराधिकार से जुड़े कानून भी बना सकती हैं. परिषदों के पास कर लगाने और वसूलने का अधिकार होता है, लेकिन उनके बनाए कानून तभी लागू होते हैं जब राज्यपाल उन्हें मंजूरी देते हैं.
लद्दाख के लोग चाहते हैं कि उनके यहां भी छठी अनुसूची लागू हो, ताकि 90% से ज्यादा जनजातीय आबादी को अपने संसाधनों और संस्कृति पर सीधा अधिकार मिल सके. वर्तमान में लद्दाख सीधे केंद्र सरकार के अधीन एक केंद्र शासित प्रदेश है और यहां की जनता को कोई विधानमंडल या विशेष स्वायत्तता प्राप्त नहीं है. छठी अनुसूची लागू होने से लद्दाख को भी वही अधिकार मिलेंगे, जो पूर्वोत्तर के जनजातीय इलाकों को मिले हुए हैं. यही वजह है कि यहां लोग लंबे समय से अपनी पहचान, जमीन और संसाधनों की सुरक्षा के लिए इस मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं.