अवैध डिजिटल लेनदेन से पाकिस्तान पर फिर मंडराया FATF ग्रे लिस्ट का साया, वित्त मंत्री औरंगजेब ने दी चेतावनी

पाकिस्तान एक बार फिर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट में जाने के खतरे का सामना कर रहा है. वित्त मंत्री मुहम्मद औरंगजेब ने चेतावनी दी है कि देश में अनियंत्रित डिजिटल ट्रांजैक्शन इसकी बड़ी वजह बन सकते हैं. उन्होंने माना कि पाकिस्तान बड़ी मुश्किल से ग्रे लिस्ट से बाहर आया था, लेकिन यदि डिजिटल करेंसी और वर्चुअल एसेट्स को नियमों के दायरे में नहीं लाया गया तो हालात फिर बिगड़ सकते हैं.

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इस्लामाबाद में आयोजित ‘लीडरशिप समिट ऑन ब्लॉकचेन एंड डिजिटल एसेट्स’ में बोलते हुए वित्त मंत्री मुहम्मद औरंगजेब ने कहा कि पाकिस्तान की लगभग 15 प्रतिशत आबादी डिजिटल लेनदेन में शामिल है, लेकिन ये सभी गतिविधियां बिना किसी औपचारिक नियमन के हो रही हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि यह स्थिति लंबे समय तक टिक नहीं सकती और समय रहते सख्त कानून न बने तो पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई और प्रतिबंधों का खतरा मंडरा सकता है.

औरंगजेब ने कहा कि पाकिस्तान ने छह साल की मशक्कत के बाद 2022 में ग्रे लिस्ट से छुटकारा पाया था. लेकिन अब अनियंत्रित डिजिटल कारोबार देश को फिर संकट में डाल सकता है. उनके मुताबिक 2.5 करोड़ पाकिस्तानी डिजिटल बिजनेस में जुड़े हैं, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के लिए गंभीर खतरा है. वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया कि यह सिर्फ समय की बात है कि यदि नियमन नहीं हुआ तो पाकिस्तान दोबारा परेशानी में घिर जाएगा.

कानून बनाने में देरी

पाकिस्तान में फिलहाल डिजिटल करेंसी और ट्रांजैक्शन को अवैध माना जाता है. लेकिन सरकार अब तक इनको वैध बनाने के लिए आवश्यक कानून पारित नहीं कर पाई है. प्रस्तावित वर्चुअल एसेट्स अध्यादेश के जरिए ‘पाकिस्तान वर्चुअल एसेट्स रेगुलेटरी अथॉरिटी (PVARA)’ बनाने की योजना है, जिसे डिजिटल कारोबार की निगरानी और लाइसेंस देने की जिम्मेदारी होगी. हालांकि, यह मसौदा अभी भी कैबिनेट की मंजूरी का इंतजार कर रहा है.

IMF और अंतरराष्ट्रीय दबाव

हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पाकिस्तान की कमजोर व्यवस्था पर चिंता जताई है. IMF ने कहा कि पाकिस्तान मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार पर काबू पाने में नाकाम रहा है. यदि जल्द सुधार नहीं हुआ तो इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां मानती हैं कि पाकिस्तान की ढीली नीतियां वैश्विक वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा पैदा कर रही हैं.

पाकिस्तान की पुरानी आदतें

पाकिस्तान का FATF से पुराना नाता रहा है. 2008 में पहली बार उसे ग्रे लिस्ट में डाला गया था क्योंकि वह आतंकी संगठनों को धन मुहैया कराता था. इसके बाद कई बार उसे चेतावनी दी गई. जून 2018 से अक्टूबर 2022 तक पाकिस्तान लगातार ग्रे लिस्ट में रहा, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा. विदेशी निवेश कम हो गया, कर्ज महंगे हो गए और अंतरराष्ट्रीय निगरानी बढ़ गई. भारत ने हमेशा यह आरोप लगाया कि पाकिस्तान आतंक को राज्य नीति के तौर पर बढ़ावा देता है और FATF की सख्त जांच जरूरी है. औरंगजेब की हालिया चेतावनी भारत के उसी दावे को और मजबूत करती है.

क्या होती है ग्रे लिस्ट

ग्रे लिस्ट (Grey List) फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की वह सूची है जिसमें उन देशों के नाम शामिल किए जाते हैं जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद की फंडिंग रोकने के लिए बनाए गए अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन ठीक तरह से नहीं कर पाते.अगर कोई देश ग्रे लिस्ट में आता है, तो इसका मतलब है कि उस देश में मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फाइनेंसिंग रोकने के लिए कानून और नियम तो बने हैं, लेकिन उन्हें ठीक से लागू नहीं किया जा रहा. ऐसे देशों को FATF ‘Increased Monitoring’ यानी कड़ी निगरानी में रखता है.

ग्रे लिस्ट में आने से क्या होता है

ग्रे लिस्ट में आने से उस देश की अंतरराष्ट्रीय छवि खराब होती है, विदेशी निवेशक और कंपनियां वहां निवेश करने से बचते हैं. साथ ही कर्ज लेना महंगा हो जाता है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान जैसे- IMF और वर्ल्ड बैंक ज्यादा सख्त शर्तें लगाते हैं. कई बार बड़े देशों के साथ व्यापारिक और वित्तीय लेन-देन में भी मुश्किलें आने लगती हैं. सीधे शब्दों में कहें तो, ग्रे लिस्ट में आना किसी देश की अर्थव्यवस्था और वित्तीय साख के लिए बहुत बड़ा झटका होता है.

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